नकाब सा ओड के वक़्त आता है ,
जब मुहब्बत में कोई पड जाता है ,
शुरुआत होती है हसींन सबके इश्क़ की ,
पर क्या सुना है तूने ए शायर कभी के ,
मिरज़ा कोई आखिर में अपनी साहिबा से मिल पाता है ।
Naakab sa odd ke waqt aata hai ,
Jab muhbbat me koi pad jata hai ,
Par kya suna hai tune e shayar kabhi ke ,
Mirza koi akhir me apni sahiba se mil paata hai .
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