चिड़िया की तरह
चहचहाती है बेटी ।
घर को खुशियों से
महकाती है बेटी ।
जिस घर को हमेशा
समझती है अपना ।
फिर एक दिन उसी घर में
पराई है बेटी ।
बचपन की सखियाँ
वो गुड्डे वो गुड़िया ।
वो पनघट वो आँगन
बीते जहाँ बचपन।
सब छोड़ ससुराल
चली जाती है बेटी।
आँखों में आंसू
छुपाती है बेटी ।
दिल के अरमान दिल में
दबाती है बेटी।
माँ बाप को दुःख हो
तो रोती है बेटी ।
एक घर की नहीं
दो घर की होती है बेटी ।
फिर भी पराया धन और
पराये घर की होती है बेटी ।।
Viky Chahar
चहचहाती है बेटी ।
घर को खुशियों से
महकाती है बेटी ।
जिस घर को हमेशा
समझती है अपना ।
फिर एक दिन उसी घर में
पराई है बेटी ।
बचपन की सखियाँ
वो गुड्डे वो गुड़िया ।
वो पनघट वो आँगन
बीते जहाँ बचपन।
सब छोड़ ससुराल
चली जाती है बेटी।
आँखों में आंसू
छुपाती है बेटी ।
दिल के अरमान दिल में
दबाती है बेटी।
माँ बाप को दुःख हो
तो रोती है बेटी ।
एक घर की नहीं
दो घर की होती है बेटी ।
फिर भी पराया धन और
पराये घर की होती है बेटी ।।
Viky Chahar
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