खुशियों का संसार ढूढ़ने
बिन मौसम बरसात ढूंढने,
मैं भागा यह हरबार ढूंढने
बिन कर्म तो स्वांस नसीब न हो,
मैं निकल पड़ा लक्ष्य पाने अपना
अरे ! मंजिल तो कब की पा लेता,
जो राह मिल गयी होती मुझको,
मैं भटका हूँ बहुत अंधेरों में ,
अब शमा जलाना सीख रहा हूँ ,
अब तक तो चलना सीख रहा था ,
अब राह बनाना सीख रहा हूँ ,
एक बात सुनी थी बचपन में
कर्ता से हारे करतार सदा,
जिस दिन मैं यह कर पाऊंगा
उस दिन मंजिल पा जाऊंगा ।
Viky Chahar
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